किसान की आत्मकथा

मैं एक किसान हूँ। मेरा नाम रामू है। मैं उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव में अपने परिवार के साथ रहता हूँ। खेती मेरे लिए सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि जीवन का अभिन्न हिस्सा है। मेरे दादा-परदादा भी इसी मिट्टी से जुड़े थे और मैंने उनसे सीखा कि खेती कितनी मेहनत और धैर्य की मांग करती है।

हर साल, मैं अपने खेत में धान, गेहूँ, और मक्का की फसल उगाता हूँ। फसल बोने के समय से लेकर कटाई तक, मैं अपनी मेहनत और समय दोनों लगाता हूँ। मौसम का मिजाज हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। कभी बारिश का समय पर नहीं आना, तो कभी सूखे के कारण फसल का बर्बाद होना, ये सब हमारी मेहनत पर पानी फेर देता है।

मेरे गाँव में अधिकांश लोग खेती करते हैं, लेकिन आजकल की चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं। महँगाई, उर्वरक की बढ़ती कीमतें, और मौसम में परिवर्तन जैसे मुद्दे हमें प्रभावित करते हैं। कभी-कभी, जब फसल अच्छी होती है, तो हम खुश होते हैं, लेकिन अगर नुकसान होता है, तो हमें मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है।

मैंने अपनी ज़िंदगी में बहुत संघर्ष देखे हैं, लेकिन फिर भी मैं अपनी मिट्टी से प्यार करता हूँ। मुझे अपने खेतों में काम करने में सुकून मिलता है। जब मैं देखता हूँ कि मेरे खेत हरे-भरे हैं, तो मेरे मन में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। मेरे बच्चों का भविष्य भी इसी खेती से जुड़ा है, और मैं चाहता हूँ कि वे भी इस पेशे को अपनाएँ।

किसान होना गर्व की बात है। हम देश की नींव हैं। हमें और अधिक समर्थन और सम्मान की जरूरत है, ताकि हम अपने परिवार और देश का भला कर सकें। आज के युग में तकनीक और ज्ञान का उपयोग करके खेती को और भी बेहतर बनाया जा सकता है, और मैं इसे अपनाने की कोशिश कर रहा हूँ।

मेरी यह आत्मकथा सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि उन लाखों किसानों की कहानी है, जो अपने सपनों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक किसान हूँ, और मैं अपनी मिट्टी से कभी दूर नहीं जाऊँगा।